मिशन चंद्रयान-2
भारत का मिशन चंद्रयान-2 एक ऐसा मिशन है जिस पर केवल भारत ही नहीं पूरे विश्व की नजर है। चंद्रयान-2 को इसरो(ISRO) द्वारा 15 जुलाई 2019 को आंध्र प्रदेश के श्रीहरिकोटा से लांच करने की तैयारी की गई थी। लेकिन तकनीकी खराबी के कारण इस तारीख को चंद्रयान-2 लॉन्च नहीं हो पाया। इसरो के अनुसार चंद्रयान-2 अब 22 जुलाई 2019 लॉन्च होगा।
क्या विशेष है, चंद्रयान-2 में और क्यों यह मिशन भारत के लिए अत्यंत महत्वपूर्ण है? इसी बात की चर्चा आज हम करने वाले हैं।
मिशन चंद्रयान-2
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भारतीय अंतरिक्ष अनुसंधान संगठन यानी इसरो के चंद्रयान-2 चंद्रमा के दक्षिणी ध्रुव पर उतरेगा। मिशन चंद्रयान-2 चंद्रमा पर भारत का दूसरा मिशन है इससे पहले भारत 2 अक्टूबर 2008 को चंद्रयान-1 का सफल परीक्षण कर चुका है। चंद्रयान-2, चंद्रयान-1 का विकसित संस्करण है। चंद्रयान -1 को पीएसएलवी सी 11 रॉकेट द्वारा भेजा गया था वहीं चंद्रयान -2 को भारत के सबसे शक्तिशाली रॉकेट पीएसएलवी मार्क 3 द्वारा भेजा जाएगा जिसका दूसरा नाम बाहुबली रखा गया है। यह भारत का सबसे बड़ा रॉकेट है जिसकी क्षमता लगभग 4000 किलोग्राम की है। चंद्रयान -2 में तीन मॉड्यूल है- लैंडर, ऑर्बिटर और रोवर इन तीनों का कुल वजन 3850 किलोग्राम।
लैंडर का नाम विक्रम जबकि रोवर का नाम प्रज्ञान रखा गया है। विक्रम लैंडर का कुल वजन 1471 किलोग्राम है वही रोवर कार कुल वजन 27 किलोग्राम है।
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कैसे दिया जाएगा मिशन को अंजाम
चंद्रयान-2 को सतीश धवन अंतरिक्ष केंद्र से छोड़ा जाएगा। रोवर लैंडर के अंदर रखा जाएगा। सबसे पहले बाहुबली रॉकेट की मदद से चंद्रयान-2 को पृथ्वी की कक्षा में स्थापित किया जाएगा। पृथ्वी की कक्षा के 5 चक्कर लगाने के बाद ऑर्बिटर चांद की कक्षा में पहुंचेगा।चाँद की कक्षा पर लगभग 19 दिन तक चक्कर लगाने के बाद यह चंद्रमा के ऑर्बिट के काफी करीब पहुंच जाएगा।
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इसके बाद लैंडर ऑर्बिटर से अलग हो जाएगा। और चंद्रमा की कक्षा के काफी करीब पहुंच जाएगा। इसके बाद लैंडर(विक्रम) चंद्रमा की सतह को स्कैन करेगा और लैंडिंग के लिए उचित स्थान ढूंढेगा। यह सारा डाटा पृथ्वी को भेजा जाएगा जिसकी मदद से चंद्रमा के दक्षिणी ध्रुव पर लैंडिंग के लिए उचित स्थान ढूंढा जाएगा। इसके बाद लेंडर चंद्रमा से लगभग 100 मीटर की ऊंचाई तक पहुंच जाएगा और इसके बाद लैंडिंग की प्रक्रिया शुरू की जाएगी। इसरो के अनुसार लैंडिंग की प्रक्रिया इस मिशन का सबसे मुश्किल काम है। लैंडिंग की प्रक्रिया में लगभग 15 मिनट का समय लगेगा। लैंडिंग करते समय विक्रम लैंडर की गति लगभग 3.5 किलोमीटर प्रति घंटा तक रहेगी। लैंडिंग के बाद रोवर जिसका नाम प्रज्ञान रखा गया है लेंडर विक्रम से बाहर निकलेगा। यह रोवर चंद्रमा की मिट्टी के नमूने इकट्ठे करेगा जिससे चंद्रमा की सतह पर पाए जाने वाले विभिन्न घटकों का पता लगाया जाएगा।
मिशन का उदेश्य
यदि भारत का यह मिशन सफल रहा तो भारत अमेरिका,रूस और चाइना के बराबर पहुंच जाएगा। क्योंकि इन 3 देशों के अलावा अब तक किसी भी देश में ऐसे मिशन को अंजाम नहीं दिया है। साथ ही इसरो का मानना है कि चंद्रमा के दक्षिणी ध्रुव पर बर्फ के होने की संभावना है यदि ऐसा हुआ तो चंद्रमा पर भी पृथ्वी की तरह जीवन की कल्पना की जा सकती है। कुल मिलाकार हम कह सकते है कि भारत का मिशन चंद्रयान-2 नई संभावनाओं को जनम दे सकता है।